समस्तीपुर। संस्कृत बचा तो ही संस्कृति बचेगी। इस लिए सर्वप्रथम किताबों में सिमट रही संस्कृत को बचाने के लिए प्रतिबद्धता पूर्वक संकल्प लेना होगा। संस्कृत दिवस पर भाषा और संगीत में अपने अलग पहचान बनाने वाली नैंन्सी झा ने दूरभाष पर अपने उद्गार व्यक्त करते हुए कहा कि बर्ष में सिर्फ एक बार संस्कृत दिवस मनाने के नाम पर भाषण और दीवारों इश्तहारों पर स्लोगनों में संकल्प दिखाने से भाषा का कल्याण नहीं होगा। इसके स्सम्मान पुनर्स्थापना के लिए इसे प्रारंभिक शिक्षा के पाठ्यक्रम में ही शामिल करना पड़ेगा। अब तो नयी शिक्षा नीति में इस बात के लिए पूरा अधिकार भी दे दिया गया है। बस हमें इसका महत्व समझना होगा और संस्कृत और संस्कृति के अंत:संबंध के बारे में जागरूकता कार्यक्रम आयोजित कर जन जन तक पहुंचना होगा। अब तो इसके महत्व को आज के वैज्ञानिक भी स्वीकार करने लगे हैं। उन्होंने कहा कि आज वैश्वीकरण और आधुनिकीकरण की होड़ में हम अपनी संस्कृति को ही भूलते जा रहे हैं, तो भला संस्कृत भाषा कैसे बचेगी। हमें देवभाषा को बचाने के लिए आने वाले जनगणना में संस्कृत को मातृभाषा के रुप में उल्लेख करना होगा। संस्कृति का सीधा सम्बन्ध हमारे संस्कार से हैं। आज भी हमारे सभी संस्कार संस्कृत के मत्रों पर आधारित हैं और उसे ही भूलते जा रहे हैं। अतैव आवश्यकता हैं, हम फिर से अपने नौनिहाल की आरम्भिक शिक्षा संस्कृत भाषा के साथ करने के लिए उत्प्रेरित करें।
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